स्वास्थ्य-चिकित्सा >> मोटापन कम करने के उपाय मोटापन कम करने के उपायप्रभुदत्त ब्रह्मचारी
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प्रकाशकीय वक्तव्य
अत्यन्त स्थूल या अत्यन्त कृश शरीर मानव-जीवन के लिए एक अभिशाप ही है। जो लोग अत्यधिक मोटे हो जाते हैं, वे किसी काम के नहीं रह जाते। उनमें स्फूर्ति नहीं रह जाती, कोई काम वे तेजी से नहीं कर सकते। शरीर मोटा होने पर भी बल की उनमें कमी बनी रहती है। मोटे व्यक्तियों के शरीर से पसीना बहुत अधिक निकलता है और मेद का अंश अधिक रहने के कारण उनके पसीने से दुर्गन्ध भी निकलती है। ऐसे व्यक्तियों को भूख, प्यास और नींद भी अधिक लगती है। उनकी आवाज भी भारी हो जाती है और उनके मुख से स्पष्ट शब्दोच्चारण नहीं हो पाता। वायु-विकार भी उनमें बढ़ जाते हैं। भूख और अग्नि की प्रबलता के कारण उनमें अन्य दोषों की भी वृद्धि हो जाती है। इससे मोटे व्यक्तियों की आयु भी क्रमशः घटती रहती हैं। मेद-वृद्धि के कारण वायु कुपित होता है। इससे अनेक ऐसे रोग उत्पन्न होते हैं, जिनको दूर करना कठिन होता है। प्रमेह, मधुमेह, फोड़े-फुन्सी, भगन्दर, कैन्सर, विद्रधि आदि विकार भी मोटे मनुष्यों को ही अधिकतर हुआ करते हैं। इन सभी कारणों से मोटे व्यक्तियों को अपना जीवन ही भार-स्वरूप लगने लगता है। कृश मनुष्य को मोटा-ताजा बनाना आसान है, लेकिन अति-स्थूल मनुष्य को कृश बनाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। श्री प्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी ने मानव-जीवन के एक अभिशाप-मोटापा को दूरकर स्वस्थ-सबल बने रहने के उपायों पर इस पुस्तक में सुन्दर ढंग से विवेचन किया है। मोटापा के दोष से जिनको अपना जीवन भार-स्वरूप लग रहा हो, उनको इस पुस्तक से आशा की नयी रश्मि दिखायी देगी। ब्रह्मचारीजी की लेखन-शैली सरल और बोधगम्य है। साधारण पढ़े-लिखे से विद्वान तक को यह पुस्तक पसन्द आयेगी, ऐसी आशा हम रखते हैं। श्री ब्रह्मचारी जी तपस्वी, साधु और निःस्वार्थ जन-हितैषी हैं। मोटापा के कारण अभिशप्त जीवन व्यतीत करनेवाले व्यक्ति इस पुस्तक को पढ़कर सन्तोष, शान्ति और सुख प्राप्त कर सकें, इसी उद्देश्य से इस पुस्तक की रचना की गयी है। हमें आशा है कि हिन्दी जगत इस पुस्तक को अपने गुणों के अनुरूप अपनाएगा।
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